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सिया भारती
Joined on 13 November 2022
मैं एक गृहिणी हूं। पढ़ते पढ़ते कैसे लिखना शुरू हुआ पता ही नहीं चला फिर शुरू हुआ लेखन की दुनिया का सफ़र। लिखते हुए लेखन से प्यार हो गया कि अब तो बिन लेखन के रहा ही नहीं जाता।
*ना झुकाना नजरें इस कदर,
कि दुबारा उठा ना सको।
झुकाना हो तो सिर सजदे में झुकाना,
कि उठ जाओ तुम्हें खबर न लगे।*
मेरे शब्दों को इतना प्यार से पढ़ने के लिए शुक्रिया आपका।🌹🙏🌹😊
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