🌿"नव सृजन"🌿
खिली-खिली धूप सुहावना मौसम है,
खिला-खिला प्रकृति का हर कण है।
बदली हुई सी धरती की हर शय है,
बदली-बदली सी लग रही ऋतु है।
चल रही सांए सांए जो यह हवा,
सांसों को कर रही सुगंधित है।
शाखों से झड़ी है पुरानी पत्तियां,
नव कोपलों का हो रहा नव सृजन है।
महकती-महकती सी यह पवन,
जैसे कर रही बसंत का स्वागत है।
रे मन!! तू मान आनंद बदली फिजाओं का,
परमात्मा बरसा रहा अपनी रहमत है।
© सिया भारती
खिला-खिला प्रकृति का हर कण है।
बदली हुई सी धरती की हर शय है,
बदली-बदली सी लग रही ऋतु है।
चल रही सांए सांए जो यह हवा,
सांसों को कर रही सुगंधित है।
शाखों से झड़ी है पुरानी पत्तियां,
नव कोपलों का हो रहा नव सृजन है।
महकती-महकती सी यह पवन,
जैसे कर रही बसंत का स्वागत है।
रे मन!! तू मान आनंद बदली फिजाओं का,
परमात्मा बरसा रहा अपनी रहमत है।
© सिया भारती