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ज़िंदगी पहेली सी
दर्द क्या जानेंगे वो
टूट कर बिखरने का
पत्तों से करो मुलाकात
तो ये पहेली हल होगी
आह क्या समझेंगे वो
किसी की याद में तड़पने की
पतझड़ में पेड़ों से पूछो
विरह की टीस महसूस होगी
मोल न लगा पाया जब यहां
जुबां से बोली बातों का
इस जहां में बोलो फिर
ख़ामोशी की कीमत क्या होगी।
समझ आती कहां सबको
ज़िंदगी पहेली सी है
आज तपिश है बाहर
कल शायद रिमझिम फुहार होगी ।
© Geeta Dhulia
टूट कर बिखरने का
पत्तों से करो मुलाकात
तो ये पहेली हल होगी
आह क्या समझेंगे वो
किसी की याद में तड़पने की
पतझड़ में पेड़ों से पूछो
विरह की टीस महसूस होगी
मोल न लगा पाया जब यहां
जुबां से बोली बातों का
इस जहां में बोलो फिर
ख़ामोशी की कीमत क्या होगी।
समझ आती कहां सबको
ज़िंदगी पहेली सी है
आज तपिश है बाहर
कल शायद रिमझिम फुहार होगी ।
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