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वैशया के अस्तित्व को दाव पर लगाकर बनी इज्जत की खोज।।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि श्रृष्टि में स्त्री को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हुआ देखा गया है, जैसे स्त्री की स्थिति में होकर सब एकत्र कर पाना असम्भव हो जाता है क्योंकि कोई भी पुरुष काभी अपने कर्म के लिए अपना कर्तव्य और दायित्व छोड़ अपनी इज्जत से खिलवाड़ नहीं करता फिर चाहे उसका अंश मिल ही क्यों नहीं जाए मगर वो अपने अस्तित्व के लिए इज्जत का त्याग बलिदान मूल्य समर्पण कदा भी नहीं कर सकता है, मगर मूर्ख कुल प्रविष्ठियां यह नहीं जानती कि इज्जत को अपने साथ में दाबकर नहीं रखा जा सकता है क्योंकि इज्जत से अस्तित्व जन्म लेता है, मगर जो पुरुष अपने अस्तित्व को प्राप्त ना करके अपनी इज्जत त्याग बलिदान मूल्य समर्पण करता है और बिना किसी हिचकिचाहट के वो इस गाथा का साछी बनता वो इस गाथा का अन्तिम्या कहलाता है और वही वास्तविक में प्रेम संगिनी को पाकर प्रेम रस श्रृंखला प्रसारित होने पर एक असम्भव की कुन्जाइश को असंभव कर इज्जत द्वारा प्रेम को सफल बनाकर अपने प्रेम में ही विलीन विलुप्त होकर प्रेम रस का पान कर बैकुनडी रीढ़ा बनकर बैठकुन्धाम प्रेम मोक्षम् फलम् योग्यता प्राप्त भवताह सा वासतानि अस्तित्वनिका बांसुरीया बेलिया बनी स्तुति प्रेम विलुप्त विराह स्मृतियों में समर्पितानि।।
#सत्यत्ताहानि।
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