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"डरावनी दस्तक"
हैलो दोस्तो, कैसे हो आप सब? मुझे उम्मीद है आप सब बढ़िया होंगे। तो आइये आपको आज मैं एक नयी कहानी 'डरावनी दस्तक' से अवगत करवाता हूँ।
शायद ही कोई ऐसा होगा जिसको किसी से डर नहीं लगता, मेरा मानना है कि हर व्यक्ती किसी ना किसी से डरता जरूर हैं। जैसे कोई अपने पापा से, तो कोई अपनी मम्मी से, नोकरी वाला अपने बॉस से, तो कोई ऊचाईयों से, या कोई अंधेरे से डरता है।

आपसे अगर मैं पूछूं कि आपको डर का एहसास कब हुआ? या आप सबसे ज्यादा किससे डरते हो? तो शायद ज्यादा तर लोग भूत, प्रेत आत्मा का सोचते होंगे। क्यूंकि हमे बचपन में भूत के नाम से ही डराया जाता था। और वही डर हमारे दिमाग में बैठ जाता है। ऐसे ही "डरावनी दस्तक" एक गाँव की कहानी है, जिसे मैं आपको बताना चाहूँगा।

एक कच्चा घर जिस पर नया कलर लगा था, चारो तरफ लाइट टिमटिमा रहीं हैं, लोग बहुत थे लेकिन हर कोई किसी ना किसी काम में व्यस्त था। बच्चे खेल कूद रहे हैं, बुजुर्ग बैठे बातें कर रहे थे, वही कुछ मीठी पकवान तैयार हो रहीं थीं। जी हाँ यहां सादी का माहौल है सुबह बारात जानी है, मैं भी पूरा लुफ्त उठा रहा हूं साथ में मेरे 3 दोस्त थे। अब तक शायद तैयारी पूरी हो चुकी थी, और रात भी गहरी हो चली थी।
एकाएक मेरे तीनों दोस्त मेरे पास आते हैं और मुझसे उनके साथ चलने को बोल रहे हैं, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा, इतने में हमको रोका गया ओर जाने को भी मना किया। तब पता चला कि मेरे घर से 600 मीटर की दूरी पर उन तीनों का घर था, जैसा कि मेरे चाचा की सुबह बारात जानी थी तो उनको अपने कपड़े लेने अपने-अपने घर जाना चाहते थे। काफी देर बहस होने के बाद हम चारो को जाने दिया गया साथ में एक टॉर्च भी दी गयी।

मेरे इस प्यारे से गाँव मे चारो तरह पहाड है, सभी के कच्चे घर ओर दिलो में प्यार था। यहां सभी के घर दूर-दूर थे, शायद खुद की जमीन पर घर बनाने की वज़ह से, खेर हम चारो लोग अब एक साथ टॉर्च चालू करके खेतों से होकर उनके घर की तरफ बड़ने लगे। अभी थोड़ी दूर पहुचें ही थे ओर हम सब डरने लगे क्यूंकि रास्ते मे एक कुआं आएगा जो पूरे गाँव का डरावना कुआं है, जिसकी हमने बहुत सी कहानियां सुन रखी थी।
एक दूसरे को हौसला देते, हसी मज़ाक करते चारो कुए के पास पहुंच गए, लेकिन आप अगर मानो हमारी टॉर्च एकदम से बंद हो गई, सभी चिल्लाने लगे और डर के मारे हमारे पसीने छूटने लगे। एक नजर उठा कर देखा बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसकी बेले लटक रहीं हैं, गहरा काला कुआं जिसमें से कुछ आवाज आ रहीं थीं, शायद वो चमगादड़ वगैरा है। कुछ दूरी से भेड़िये की रोने वाली आवाज सुनाई देने लगी, फिर हर तरह देखा दूर दूर तक कोई नहीं था वापस भी लौट नहीं सकते टॉर्च भी बंद हो गयी लेकिन एक बार फिर हिम्मत बांधी ओर एक साथ दोड़ कर कुआं पार करने के बारे मे सोचा।

हिम्मत चाहे लाक रख लो, अकेली अंधेरी रात कि अगर बात है तू मान ना मान सबसे ऊपर डर का ही वास है।
दोस्तो आगे की कहानी और भी मजेदार है, जो कि "डरावनी दस्तक" भाग-2 में आपको मिलेगी। इंतजार के लिए माफ़ी चाहूँगा मगर बहुत जल्द ही कहानी आपको मिल जायेगी।.....

© by :- kk writer