...

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राम चले वन को
अवध के हर कण की, धड़कन ये बोल उठी,
छोड़ कर के हमको क्, यों राम चले वन को।

राजा दशरथ के हृदय, जैसे गिरी बरछी हो,
राजा हुआ रंक, उसके राम चले वन को ।

विरह की अश्रु धारा, सम्हरत न मात से,
महल लगे है काल कोठी, राम चले वन को।

सरयू का जल न कल , मची बड़ी उथल पुथल,
धोऊं कैसे चरण, प्रभु राम चले वन को ।

अवध के हर कण की धड़कन ये बोल उठी
छोड़ कर के हमको क्यों राम चले वन को।।

वो मित्र ही क्या मित्र, जो न मित्र के ही काम आए
निषाद है विरक्त खड़ा , राम चले वन को।

मईया सीता का शोक, भईया लक्ष्मण का क्रोध
हम भी चले संग, जो मेरे राम चले वन को।

भाई ‘भरत’ भरत न जल, बस आंसुओं से धोता मल
मै पापी मैं अभागी , मेरे राम चले वन को।

अवध के हर कण की धड़कन ये बोल उठी
छोड़ कर के हमको क्यों राम चले वन को।।

🙏🪷🙏
ध्रुव

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