...

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बिखरती_ख्वाहिशों_की_चीखें_सुनता_हूं
कभी कभी ख्वाइशों का ज़िक्र रखता हूं
प्यासी फरमाइशों को अधुरा ही रखता हूं
मेरे मन के ख्यालों का पता पन्नों पे उतरें है
बातों-बातों में तमाम ज़ख़्मों से उठाता हूं

गुजरती हुई रातों में ख्वाबों को लिखे है
मैं उलझनों की कश्मकश को बताता हूं
आहिस्ता आहिस्ता ख्वाहिशों को बुनें थे
बनते बिगड़ते हालातों से मैं घबराता हूं

मन ही मन ना जाने कितनी बातें मचली है
अक्सर अश्कों को साथ सब को छुपाता हूं
वक़्त के साथ तसल्लियों का खेल मशहूर है
मैं ख़ामोशी से अनकहे ज़ख़्मों को भरता हूं

कहीं ना कहीं शीशे से ही तमाम गुफ्तगू हो गई
हसरतों की इक अधूरी कहानी को लिखता हूं
प्रश्नों का सिलसिला अनगिनत लफ़्ज़ों में रखें है
मजबूरी की जंजीरों में ख्वाहिशों को रुकता हूं

यूं ही नहीं ज़िंदगी के फ़लसफ़ो को समेट हुए है
गुजरती हुई उम्र के साथ उम्मीदों को सुनता हूं
यूं ही नहीं शिकायतों का इक हिसाब करें हुए है
मैं हर पल बिखरती ख्वाहिशों की चीखें सुनता हूं

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes