...

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क्योंकि वो मुझसे बात करती है..
ऐ शाम ये तेरी बेईमानी है,
तेरे आते ही जाने की मनमानी है ...
तू उसकी याद लेकर आती है ,
और मुझे रात के हवाले कर जाती है ...
रात से डर लगता है, उसकी बात से डर लगता है ,
ऐ शाम तू तोड़े जो बार बार उस ऐतबार से डर लगता है ...

सुर्ख़ शाम की अँधेरी रात आज फिर आई है ,
लेकिन आज वो मेरे डर को ढूंढ नही पाई है ...

सच कहूं रातों को मैं अंधेरों से पहचानता था ,
जब तक मैं जुगनुओं को नहीं जानता था ...
एक जुगनू दिखा है तो और भी होते होंगे ,
फिर जादू भी होता होगा चिरागों में ज़िन भी होते होंगे ...
दरिया और सपने भी पूरे होते होंगे .....

हर रात एक चांद मेरे लिए भी चमकता होगा ,
चांदनी में फरिश्तों का फ़रमान बरसता होगा ...
और फिर और फिर प्यार भी होता होगा ,
होता होगा पर क्या होता होगा ?

अंधेरे में रोशनी का आना ,
या मार्च की गर्मी में कुछ सोचकर कंपकपाना ,
चादर में मुंह छिपाना बिस्तर से उठ न पाना ,
मन की मेज़ पर बैठकर उससे घंटों बतियाना ,
छटपटाना , मुस्कुराना ,
अपने ही बालों को सहलाना ...
बस उसकी ही यादों में खोते चले जाना ...
बस खोते चले जाना....

हां प्यार तो है , वो मुझसे बात करती है ,
ये कहकर ख़ास करती है ,
वो हंसकर धीरे से खुशहाल करती है ,
वो देखती है मेरी ओर सुर्ख मेरे हालात करती है ,
मुझे लगता है कि मैं हूं क्योंकि वो मुझसे बात करती है...

#Katha_Ankahi #Katha_Vivaan


© Jaya Tripathi