...

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छुट्टियां
छुट्टियां यूं ही बीत जाती है अब
बिना किसी आनंद के,
पहले छुट्टियों का इन्तजार रहता था
अब तो उनके गुजरने का रहता है
न कोई खेल न मस्ती न पहले वाला अल्हड़पन
अब तो बोरियत भरा दिन और नीरस सी शाम
समय की बहुत कमी है सबके पास
जो थोड़ा सा समय बचा भी
वह smartphone के नाम हो गया
क्या बच्चे क्या बड़े क्या बूढ़े
सभी को फोन का नशा हो गया
ऐप्स तो बहुत हैं पर,
अपनापन कही खो गया
अपनो की फिक्र है सभी को
बस समय नहीं है अपनो के लिए
सुबह घर से जाने की bye
शाम को घर आने की hi
बस यही जीवन का सार रह गया
जीवन की रफ्तार में हर कोई ऐसा उलझा
पहले दौर क्या था, अब क्या हो गया......
© Om Pandey