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मज़दूर
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
भूखा प्यासा निकल पड़ा है सड़को पर, जिंदगी बचाने और अपनों के पास जाने। डाल रहा है खुद को अंजान परेशानियों में।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
जो कई वर्षों दिन रात मेहनत करता रहा जिस शहर में बस दो वक्त की रोटी के लिए, आज मिला न कोई सहारा जो दे सके खाना।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
न विदेश जाने वाला वह न बिमारी फ़ैलाने वाला वह, फिर सजा पाने वाला क्यों है वह?
शायद उसका हैं यह कसूर की वह हैं एक मज़दूर
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
न उसके सपने बड़े न उसकी किस्मत बड़ी,
हर हाल में बस उसकी दिक्कतें बढ़ी।
कब मांगा उसनेे खुशियों का आसमान हैं।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
ये हालात की बेबसी हैं या हमारी बदकिस्मती की
पैसों के आगे जिंदगी कुछ भी नही। आज अगर दिखाएं सब थोड़ी इंसानियत तो मिल जाएगी उस मज़दूर को भी राहत।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
भूखा प्यासा निकल पड़ा है सड़को पर, जिंदगी बचाने और अपनों के पास जाने। डाल रहा है खुद को अंजान परेशानियों में।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
जो कई वर्षों दिन रात मेहनत करता रहा जिस शहर में बस दो वक्त की रोटी के लिए, आज मिला न कोई सहारा जो दे सके खाना।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
न विदेश जाने वाला वह न बिमारी फ़ैलाने वाला वह, फिर सजा पाने वाला क्यों है वह?
शायद उसका हैं यह कसूर की वह हैं एक मज़दूर
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
न उसके सपने बड़े न उसकी किस्मत बड़ी,
हर हाल में बस उसकी दिक्कतें बढ़ी।
कब मांगा उसनेे खुशियों का आसमान हैं।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
ये हालात की बेबसी हैं या हमारी बदकिस्मती की
पैसों के आगे जिंदगी कुछ भी नही। आज अगर दिखाएं सब थोड़ी इंसानियत तो मिल जाएगी उस मज़दूर को भी राहत।
आज हर मज़दूर इतना मजबूर क्यों हैं?
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