...

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नैनों की भाषा
डूबा आफताब फलक उसकी जागीर न हुई
इन परछाइयों से मुहब्बत की तासीर न हुई

उठा कर नज़र पढ़ ज़रा मेरे नैनों की भाषा
इश्क़ में लिपटी हसरतें अभी तामीर न हुईं

समझेगी खतावार ये दुनिया तू ढाँप ले मुझे
छू लूँ उचक कर चाँद ऐसी तकदीर न हुई

ठहरी हुई जमीं ये आसमां भी ठहरा हुआ
जो बांध ले समा यहीं, वो जंजीर न हुई

दिल ए अंजुमन सर्द करती खवास साँसें
बदलती रही मौसम मगर कश्मीर न हुई
© सोनी