...

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उम्मीद
सफर लंबा है,
क्यों आधे में ही थक गया?
माना यह लम्हा थोड़ा दर्द भरा है,
क्यों आगे के हसीन लम्हों की उम्मीद तू छोड़ गया?

आज अंधेरा है,
तो क्या हुआ?
कल उजाला भी तो आना है।
ढल गया सूरज,
तो याद रख,
रात के बाद दिन भी आना है।

एक पल की हार से,
यूँ डर कर न तू बैठ।
खोल दे पर अपने,
ये आसमान एक उड़ान चाहता है।
उदास हुआ कोई एहसास नहीं,
यह नभ हँसता हुआ एक परिंदा चाहता है।

एक मोती है तू,
मोतियों का कोई भंडार नहीं जो बिखर कर बैठा है।
अकेला है तो क्या हुआ?
ऐसा चमक कि दुनिया को भी पता चले,
कि इस भीड़ में एक चमकता हुआ मोती भी रहता है।

© Musafir