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अपना ग़म, उठा रहा हूँ मैं...
अपना ग़म, उठा रहा हूँ मैं
जितना हो सकता है, मुस्कुरा रहा हूँ मैं

बात बे बात, बात बात में, बात को, बात में थामा तुमने
बोलना बन्द, लगा रहा हूँ मैं
जितना हो सकता है, गुनगुना रहा हूँ मैं

मान लिया, मन का, मन ही मन में, मान के जैसा तुमने
अपना मन, बुझा रहा हूँ मैं
जितना हो सकता है, छटपटा रहा हूँ मैं

जीने के लिए, जी का, जीभर, जीना ही जो चाहा तुमने
अपना‌ जी, दफना‌‌ रहा हूँ मैं
जितना हो सकता है, डगमगा रहा हूँ मैं

* विपिन कुमार सोनी©
09/10.02.2024
© विपिन कुमार सोनी
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