...

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मेरी उम्मीद !
उम्मीद भी तुमसे थी..
क्योंकि मोहब्बत भी तुमसे थी !
उम्मीद भी बस इतनी की..
मेरी नाराजगी पर कभी तुम भी
मुझे मना सको ।

अगर हर दफा मैं..
मांग लेती हूँ माफियां तुमसे,
तो तुम भी बस एक दफा मुझे प्यार से
समझा सको..!

यूं ही साथ रहने से कोई
हमसफर नहीं बन जाता..
अगर मैं कह देती हूँ, दिल की सारी
बातें तुमसे....
तो बेझिझक होकर तुम भी कभी दिल
की साड़ी हाल मुझे सुना सको !