मैं और मेरा दर्पण ॐ
#दर्पणप्रतिबिंब
दर्पण के सामने आज कुछ
फुर्सत में यूं ही बैठे थे।
निहारेंगे खुद को दर्पण में,
ये सोचकर हम बैठे थे।
नज़र उठाकर देखा खुद को
सहम जरा हम गये थे।
सामने खुद को न पाकर
कुछ डर से हम गये थे।
सामने जैसे कोई और बैठा हों
वे क्षण कुछ ऐसे थे।
फिर गौर से देखा आईना तो
हम हीं वहां बैठे थे।
झुरियां अनेक चेहरे पर
आंखों के नीचे...
दर्पण के सामने आज कुछ
फुर्सत में यूं ही बैठे थे।
निहारेंगे खुद को दर्पण में,
ये सोचकर हम बैठे थे।
नज़र उठाकर देखा खुद को
सहम जरा हम गये थे।
सामने खुद को न पाकर
कुछ डर से हम गये थे।
सामने जैसे कोई और बैठा हों
वे क्षण कुछ ऐसे थे।
फिर गौर से देखा आईना तो
हम हीं वहां बैठे थे।
झुरियां अनेक चेहरे पर
आंखों के नीचे...