...

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लिहाज...
इस लिहाज से गुजरा हुआ कल भूल गए..
मेरी प्रेरणा के मोती यूहीं धूल गए..
लिहाज का एक विष पीकर...
कब तक छिन्न होता रहूँ..
इन हितैषियों की माला का,
कब तक मैं गुणगान करूँ..
छिपकर होता एक करिश्मा,
कैसे मैं बिन रैन करूँ..
मेरी एक सहेली रूठी,
कब तक मैं फरियाद करूँ..
है सजग प्रेम जगत में,
बस यही विश्वास करूँ.....
नवीन मन की इस स्मृति का..
कैसे मैं उद्दार करूँ..
बढते तन का चितवन मन से..
कैसे जारी फरमान करूँ..
लिहाज से गुजरा हुआ कल....
कैसे मैं इंसान बनूँ..
कैसे मैं इंसान बनूँ...
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