...

33 views

एक सपना ऐसा भी...
जाने कितने इम्तहानों से गुजरना है
अक्सर पूंछा जाता है यह सवाल
तुम्हें क्या? बनना है।
जब छोटे थे उम्र क्या थी,
अक्ल भी कहां इतनी होती।
मगर जवाब देना था,
कुछ अपने आसपास कुछ अपने बड़ों से सुनते,
डॉक्टर, पटवारी, अभियंता,
आइएएस, आरएएस, शिक्षक..
कुछ ऐसे ही नाम चलते...।
उनमें से एक नाम हमने भी आगे कर दिया,
अपना भी इन्हीं में से कोई सपना है।
हमें भी इन्हीं में से कुछ बनना है।
वो तो बचपन की बात और बचपन की जुबां थी,
क्या था अपना सपना शायद ही अब याद थी।
अब समझदारी का मुखौटा छाने लगा है,
गुजरता हुआ ये वक्त सवाल करने लगा है,
आखिर तुम्हें क्या बनना है!!
कब-तक बचेंगे इन सवालों से,
ये सवाल हर रोज़ पीछा करेंगे।
जाने कैसे-कैसे वार करेंगे।
कुछ में हिदायत कुछ में शिकायत होगी,
ये सब सवाल तुम्हें तैयार करेंगे।
किसका क्या सपना है,
किसको क्या बनना है,
कहां जीतना है और कहां हारना है,
किसकी खुशी में शामिल होना है
और किसके गम में रोना है,
यह खुद को तय करना है।
सिलसिला चलता रहेगा इम्ताहानों का।
कुछ इम्तहान एक उम्र तक रूक जाएंगे,
कुछ इम्तहान ज़िंदगी भर लिए जाएंगे,
तब फैसला हमारा होगा,
एक सपना मुझको ऐसा भी रखना है,
कुछ बने न बने
मुझको एक नेक इंसान बनना है।
© मनीषा मीना