...

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बेरंग
बेरंग सी ज़िन्दगी से
आख़िर कैसे नजरें चुराऊं
रंगों को मुट्ठी में भर
सबसे कब तक छिपाऊं।।

मांग में लालिमा सजाए
इंद्रधनुषी मोतियां गले में बिठाए
हरी हरी चूड़ियां खनकाए
सबको लगता है जैसे
रंग मुझमें है समाए।।

रंगों से रिश्ता जोड़ते जोड़ते
रंगों में ही कहीं खो गई हूं
अपना निजत्व छोड़
खुद रंग विहीन हो गई हूं।।

चाह है की
इंद्रधनुषी रंगों को समेट
सबकी ज़िन्दगी में भर दूं
रंगों को खुद में लपेटे
इस दुनिया को मैं अलविदा कर दूं।।