...

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मेरी
फिक्र तुम बस अपनी किया करो, गम ए समंदर तो
मीरास हैं मेरी,

पंख तो कट गए पर फिर भी उड़ता हूं, कुछ ऐसी
परवाज़ हैं मेरी,

हर बहाने का सच बाहर आता रहा,कुछ ऐसी
आज़माइश हैं मेरी,

मांगा था दिल,दर्द दे दिया, यूं ही पूरी हुई हर
फ़रमाइश हैं मेरी,

चाहा था सबको साथ ही रखना,पर साथ तो रहती
तन्हाई हैं मेरी,

ना दिन को चैन,ना रात को नींद,रूह ऐसे किसी ने
सताई हैं मेरी,

रकीबों से ना गिला कोई,शिकायत हल्क़ा- ए-अहबाब
से रही हैं मेरी,

रंग बगावत का तुझ पर भी चढ़ेगा 'ताज' सोहबत ही कुछ
ऐसी हैं मेरी।
© taj