...

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मर्द
भाग- 1

कितना बेबस होता है वो मर्द,
जो मर्द कहलाता है,
आँखों में आंसू सजे हो उसके मगर,
कोई आगे पीछे नहीं उसके,
ये सोच के मन घबराता है,
जालीम है दुनिया,
क्यू दुनिया के कटघरे में,
हर बार मर्द ही,
घेरे लगाता है,
हिस्सदारी के टुकड़े हुए,
खुदा के यहाँ तो,
चैन, परवाह, सुकून,सब्र,
सब नसीब हुआ उसे,
पर आँसूओ के कतरो ने,
औरतों का दामन साधा,
और खर्चो ने तो जैसे,
खुद ही जाकर,
मर्द का माथा माँगा,
अहसास हुआ कुछ तलक उसे,
तब तक फैसला किया जा चूका था,
आंसुओं ने तो फिर भी पनाह दी उसे,
पर खर्चो ने,
बेख़ौफ़,बेहिसाब, हिसाब ली उससे,
इस हिसाब की कोई किताब नहीं,
मैंने देखा है मेरे घर में,
फसाद के जड़ों में,
खर्चे के साथ,
मर्द का कोई हिस्सेदार नहीं,
© --Amrita