...

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*** गुंजाइश ***
*** कविता ***
*** गुंजाइश ***

" तुमसे कहना हैं कुछ कि ,
कुछ तुझे गवारा ना लगे ,
मेरे बात का क्या है आज बज़्मे सुखन में ,
फिर ऐसा हो कि फिर कहीं तेरा दिल दुबारा ना लगे ,
बामुश्किल से ये बात आई हैं ज़हन में मेरे ,
इशारा अब क्या करु फिर कहीं दिल दुबारा ना लगे ,
चल सम्भाल लिया जाये इस बहकते दिल को ,
फिर कहीं किसी शख़्स से मुहब्बत की गुंजाइश ना लगे ,
हसरतें काफिर ठहरा हैं बामुश्किल दिल कहीं लगा पाये हैं ,
कहीं ख्याल का तामिर हो कि तेरे लिए दिल में कोई जगह बना पाये हैं . "


--- रबिन्द्र राम

© Rabindra Ram