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गुहार ~ टुकड़ों में पाईं जाएगी !
आओ बताऊं आज मैं तुमको
बात कान्हा अपने जिया की
तुम भी सुन लो बैठ शांति से,
कथा त्रेतयुगी राम सिया की ।

एक थे राम जो रूप था तेरा
शांत सुंदर भावुक चित्त चकोरा
अकूत सभ्यता की परिसिमा वो
जन मानस के हृदय उकेरा ।
©®@Devideep3612
पुरुषोत्तम कहलाते थे वो,
मन मंदिर सबके बसते थे,
सीता साध्वी जैसी रमणी,
अयुध नगरी ब्याह लाये थे ।

कैसा चक्र फेरी नियति फिर
अरण्य राम को दे डाली थी,
सीता नार कोमलांगी थी पर,
अडिग आदर्श वो वामांगी थी ।
©®@Devideep3612
बहु कष्ट वो उकेरे थे दोनों
संयमताका बोध कराते थे,
संघार कर दिया दानव का,
हर विपरित से टकराते थे ।

स्थापित आदर्श दोनों ने किया था
शांति के स्थिर पथपर चल कर,
दुष्ट दमन ही उद्देश्य था उनका,
बने राजा तब विपत्ति हल कर ।
©®@Devideep3612
ध्यान दे कान्हा सुनलो कहानी
द्वापर के तुम हो, ईश निशानी
सत्य धर्म की पराकाष्ठा होगी,
बरकरार रखना तुम अपनी रवानी ।

अब भी तुमको ले चलना है
जनमानस, धरम की राहों पे
स्त्री का मान प्रतिष्ठा रखना,
देना ध्यान अबला आहोें पे ।
©®@Devideep3612
तब तुम भी पूजे जाओगे
कलियुग के अंतिम पल में भी,
देखों एक भी छूटेंना तुमसे
न दानव दिखें, आते कल में भी ।

कलयुग भयद भयंकर होगा
कई पांचाली यूंही बन जाएगी,
तुझको ही है रक्षण करना,
वरना टुकड़ों में पाईं जाएगी ।
©®@Devideep3612