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कैसा ये ज़माना
कैसा ये ज़माना
धूप छाँव रात दिन में बसर करता
दिख रहा ये ज़माना
पता नहीं क्या होता है क्यों होता है
कभी कभी मन खिला खिला
तो कभी मन उदास होता है
न जाने ऐसा क्यों होता है
कारण का कु छ अता पता नहीं होता
बस मन उदास होता है
जिन्दगी की कुछ बातों से
हैरान परेशान दिखता है
समझ से बाहर होती हैं ज़माने की बातें
जाने कैसे कैसे मोड़ पे ले आती ज़माने की बातें
जिन्दगी की जिन्दगी से मुलाक़ात हुई
जाने कैसी ये बात हुई
फिर ऐसी क्यों बात हुई
फिर भी जिन्दगी से अच्छी
न कोई सौगात हुई
जिन्दगी की माया नगरी में
ये कैसी बात हुई
कभी धूप तो कभी छाँव तो कभी बरसात हुई
हर आदमी अपने आपको तराशता दिखा यहाँ
रूप अनेक व्यक्ति एक
अलग अलग नामों से जिन्दगी की
मुलाकात हुई फिर भी अपने ही
हुनरमंद होते हुए भी
अपने अपनों में अपनेपन की भावना
तलाश करता दिखा इंसाँ यहाँ
विधाता ने भी कैसा खेल रचा
ये भी न समझ पाया इंसाँ यहाँ
अपने आप में हताश परेशाँ हो
अपने आप को कोसता इंसाँ दिखा यहाँ
जब अपने आप में थक कर चूर हुआ
तब ईश्वर से राह दिखा फ़रियाद किया
कैसी ये जिंदगी दी
बेबुनियाद बेमतलब सी जिन्दगी दिखी
अपने लिए कम दूसरों के लिए
जीती जिन्दगी दिखी
फिर भी गिले शिकवे के बीच फँसी
जिन्दगी दिखी
दिल खुद को ही
दिलासा दिलाता दिखा हर बार
इसी बीच जिन्दगी को
जिन्दगी मिली
उसी की दिखाए राह पे चलती
जिन्दगी दिखी
फिर एक मोड़ ऐसा आया जब
अपने आप से दूर होती जिन्दगी दिखी
माया नगरी के खेल में फँसी जिन्दगी दिखी
चुप चुप गुमशुम उदास
बोलती खामोशी घिरी दिखी
अपने आप से सवाल करती जिन्दगी दिखी
क्या मिला तुझे कुछ पल जिन्दगी जी कर
जो मिली थी उसे भी कैसे खो देती
जवाब देती जिन्दगी दिखी
एक जिन्दगी ही तो थी जो
बेगानों में मुझे अपनी सी दिखी
बोलती तस्वीरों के बीच घिरी जिन्दगी दिखी
तस्वीरों के इर्दगिर्द जिन्दगी दिखी
कैसा ये पैमाना है नित ही यहाँ
नव मेहमान का आना
पुराने का लगा रहता जाना है
ख़ुशियों की तलाश में
खुद का भी सुकून खोते दिख रहा
ये ज़माना है
अच्छे में बुराई खोजता
बुराई में अच्छाई ढूँढता
दिख रहा ज़माना है
कैसा ये ज़माना है
ये तो हर किसी का
अपना अपना फ़साना है
हम तो बेकार की उलझनों में फंस गए
ये तो अपने आप को खुश रखने का ज़माना है
न जाने क्यों ये बात समझ न आना है
कोई कैसा है क्यों है
किसने क्या कहा क्यों कहा
इन बातों से जितना दूर रहो
का ये ज़माना है
खुशियों की चाह में
खुद को भूलता दिख रहा ये ज़माना
अपनी ख़ुशियों को समेट कर
खुश रहने का ज़माना है
दिल तुम्हारा ही तुम्हे समझा रहा
चेहरे पे तुम्हारे जो बातें मुस्कान लाएँ
उन बातों का ज़माना है
मेरी तरफ से तुम्हे ये छोटा सा नज़राना है
© Manju Pandey Choubey