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मेरी शिकायत है।
बात कड़वी जुबां पे आई है,
हां ये मेरी रुसवाई है।
मेरी शिकायत है।
था बेखबर ये झुलसा हुआ सा मन,
आग तुमने ही बरसाई है।
मेरी शिकायत है।
है खामोश सारे मंजर मेरे भीतर,
मुझे नोचती तन्हाई है।
मेरी शिकायत है।
नजारे डूबते से आ रहे नजर मुझको,
आंख मेरी भर आई है।
मेरी शिकायत है।
बीच भंवर साथ मेरा छोड़ने वाले,
क्या खूब तेरी रहनुमाई है!
मेरी शिकायत है।
काट कर पंख मुझे आसमा दिखाने वाले,
क्या हौसला आफजाई है!
मेरी शिकायत है।
मैं तुम्हें समझता था समझदार बहुत,
तुमने क्या समझदारी दिखाई है!
मेरी शिकायत है।
नाता तोड़ना ही था क्या रास्ता केवल,
क्या यही तेरी दानाई है!
मुझे शिकायत है।
© Prashant Dixit
हां ये मेरी रुसवाई है।
मेरी शिकायत है।
था बेखबर ये झुलसा हुआ सा मन,
आग तुमने ही बरसाई है।
मेरी शिकायत है।
है खामोश सारे मंजर मेरे भीतर,
मुझे नोचती तन्हाई है।
मेरी शिकायत है।
नजारे डूबते से आ रहे नजर मुझको,
आंख मेरी भर आई है।
मेरी शिकायत है।
बीच भंवर साथ मेरा छोड़ने वाले,
क्या खूब तेरी रहनुमाई है!
मेरी शिकायत है।
काट कर पंख मुझे आसमा दिखाने वाले,
क्या हौसला आफजाई है!
मेरी शिकायत है।
मैं तुम्हें समझता था समझदार बहुत,
तुमने क्या समझदारी दिखाई है!
मेरी शिकायत है।
नाता तोड़ना ही था क्या रास्ता केवल,
क्या यही तेरी दानाई है!
मुझे शिकायत है।
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