...

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"लफ़्ज़ों से खेलते खेलते"
लफ़्ज़ों से खेलते खेलते,
ख़ुद यूँ कुछ खिलवाड़ हो गए..!

किसी को पसंद नहीं आते,
बंद दिल के सभी किवाड़ हो गए..!

जब तक हाज़िर रहे जिसके लिए,
तब तक रहे किसी मुलाज़िम की तरह..!

अपने बारे में जब सोचा जरा सा,
पल भर में रद्दी कबाड़ हो गए..!

हरित थी धरा दिल की पहले,
अपनों के ताने ग़म की बाढ़ हो गए..!
© SHIVA KANT