...

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एक अर्से से
हम किसी और ही साने के दरख़्त रहे थे
खजंर टूट गए शाखो से बेहद शख्त रहे थे
वक्त के सानेहा से , गुजार कर
रंज तो कच्चे उम्र में, अबसारो से बहे है
उस वक्त की संजीदगी का अलामत(संकेत) नही मिले
नकाब पोसीयो ने नकाब डालकर
बङी आसानी से सानेहा, से अपने काम लिए थे

तब से पोशीदा अपने अजाबो को छेलकर
हर दिल कि कश्ती के हम दरिया रहे है
हम किसी जंगलों मे रहे
पहाड़, पेङो ,दरख़्तो के दुख है
जो चाह कर भी अपनी व्यथा सुना न सके
मै उन परिन्दे जो अपनी सफर ए ज़िंदगी मे
उङते उङते गुजर गए है
हम वो शायर है जो अपनी
शेरो को कहते कहते रह गए है, ,




© Satyam Dubey

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