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फर्क है तुम्हारे मेरे हालातों में,
फर्क है तुम्हारे मेरे हालातों में,
इस खामोशी में दबी आवाज़ों में।
बंधन बेड़ियां हैं मेरी,
बेड़ियों में बांधना खयालात हैं तुम्हारे।
तुम्हें खबर तक नहीं कि किस रोज तक तुम आजाद हो,
आज खुल जाए ये पर तो अगले ही पल मौत है तुम्हारी।
किस रोज से देखा नहीं है सवेरा,
हर शाम गुजारने को तवायफ है तुम्हारी।
कितना फर्क है तुम सोचो जरा,
मैं इस पिंजरे में बंद हूं और मेरे बदले की उड़ान है तुम्हारी।
ये फर्क समझौता नहीं बस एक शर्त है,
बैठी रहे वो किसी कमरे के एक कोने में
और बादशाहों सी खिदमत हो तुम्हारी।
© chayansays...
इस खामोशी में दबी आवाज़ों में।
बंधन बेड़ियां हैं मेरी,
बेड़ियों में बांधना खयालात हैं तुम्हारे।
तुम्हें खबर तक नहीं कि किस रोज तक तुम आजाद हो,
आज खुल जाए ये पर तो अगले ही पल मौत है तुम्हारी।
किस रोज से देखा नहीं है सवेरा,
हर शाम गुजारने को तवायफ है तुम्हारी।
कितना फर्क है तुम सोचो जरा,
मैं इस पिंजरे में बंद हूं और मेरे बदले की उड़ान है तुम्हारी।
ये फर्क समझौता नहीं बस एक शर्त है,
बैठी रहे वो किसी कमरे के एक कोने में
और बादशाहों सी खिदमत हो तुम्हारी।
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