...

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"" मेरी हार......!! ""
"किन्हीं दो उनझनों से बाहर निकलना चाहती हूं , फिर क्यों ?मेरी कोशिश बेकार है ......
कई बार पढ़ने की चाहत हुई इनको , जैसे शब्द धुंधले और मेरी आंखें भी गवार है....
कैसे ? इन उलझनों से रू-ब-रू करु खुद को ,
समझ नहीं है मुझे !! शायद ये मेंरे दिल और दिमाग के बीच की दरार है.....!!


यह मंजर बड़ा "दर्दनाक" है ,जो गुजर गया ,
पर आंखे अब भी इनके लिए बेकरार है .....,
होठों पर झूठी "मुस्कान" लिए फिर रही हूं , पर पलकों तले अब भी आंसू मूसलाधार है.......


छुपी है अनगिनत "चिंगारियां" लफ्जों के दामन में , यह गमों की कैसी ? मुझ-पर बौछार है .....,
हर वक्त की समझदारी तो बोझ है ,चलो कुछ बचकानी बात करु खुद से.....
यह थोड़ी-सी तो मजेदार है.....!!


घर के कोने में धूप-सी लगने लगी थी , जरा बाहर एक-पल ठहर कर देखा .....!! ये नकली "आसमान" कितना "छायादार" है ........,
यह झूठी हंसी मेरे दिल के कोने में एक दर्द-सी चूभती है , हाय....!! ये मेरे आंसू कितने वफादार है.......!!


दम-सा घुटने लगा है अब इस जिंदगी के साथ , जैसे ये जीना मेरे लिए कोई भार है....
अब "चाहत" नहीं है मुझे हंसकर जीने की ,
जरा देखो तो सही... ये गमों की कितनी अच्छी बहार है.....


अपनों की आवाज गूंजती हुई शहनाई-सी लगती थी ,
अब मेरे पास खामोशी-भरी कविताओं का खाली सार है .........,
किन-किन "तरकीबों " से दिलासा दु ...मैं खुद को ?
क्या ? मान लू कि मेरी हार हैं .....
" ....मेरी हार है"

JANKI KUNWAR
16.8.22 (11:13AM)
@jankikunwar