...

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किसी के आगमन में गीत ।।
आंखो में गंगाजल भर कर।
और बेनो में गीत सजाकर ।
राह तुम्हारी देख रही हूं।
मैं राहों में पुष्प बिछाकर ।।
,,, ( बंध)

घंटो तक देहरी पे बैठी।
और मन मे ये सोच रही हूं।
खोकर पाना पाकर खोना ।
क्यू रबने ये खेल बनाए ।
तुमको पाकर मैं मन अपने ।
देखो कितनी हरष रही हूं।।

,,, आंखो में गंगाजल,,,,,,

प्रेम की कितनी कठिन विधाएं ।
मैं तो सारी निभा रही हूं।
तुम्मे मैं हूं ,मुझमें तुम हो ।
फिर कैसे ये मेल बिगाड़े ,
तुमसे सब तकलीफे लेकर ।
मैं तो खुद पर वार रही हूं।।
आंखो ,,,,,


© sarthak writings