...

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बर्बादी की राह
बुलावे के दिन में हमने, भुलावे को याद किया,
जाना चाहें पास उनके, जिन्होंने हमें बर्बाद किया,

यूँ तो मयस्सर नसीब थे हमें तन्हाई के लम्हें साकी,
झूठी ज़ुस्तज़ु उनकी, हमसे ख़ुद को आबाद किया,

कैसे गुज़रे वो दर्द की रातें, सिलवटें कैसे रोईं हैं,
किन अल्फाजों में सुनाएं "सारा" ने भी तो फसाद किया,

ख़ुशी की एवज में हमने गमों से दिल लगाया है,
"मीत" कहकर उसे दिल का, उसे सय्याद किया,

नज़रबंद रहना कुबूल था तुम्हें ही ताउम्र उसकी हो,
चाहत में तुम्हीं ने ही तो कैदी ख़ुद को,उसे आज़ाद किया,

मसला ये नहीं कि अब कौन तड़पे कौन जिए,
हमने दिलों के सौदे में हार ख़ुद को उसे हमराज किया।
© khwab