...

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जाने- दो


#जाने-दो..!
जाने दो जो चला गया,
मृगछालों से जो ठगा गया।
बेवक्त जो वक्ता बना गया,
वो वक्त भी बेवक्त ही रह गया।

निर्माण का कारण भूल गया,
विनाश का राह धूल गया।
धरती को धकेल के चला गया,
स्वर्ग की ओर वो निकल गया।

हवा में उड़कर खो गया,
सपनों के ख्वाबों को रो गया।
वक्त की बेधड़की से चला गया,
राहों में हर कोई खो गया।

रूप धर्म का निराधार गया,
असल में आवार गया।
समय से पीछे कैसे चला गया,
मनुष्य कैसे चूका गया।

जीवन का सफर संगीन है,
आगे बढ़ते रहना है मन में।
भूलकर भी उसे वापिस ना आने देना,
जो कभी बिना मंजिल के ही चला गया।
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