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त्योहारों में वो बात कहाँ ?
आजकल त्योहारों में वो बात कहाँ,
हँसी- खुशी, उल्लास कहाँ,
पहले तो शक्कर बताशे भी पकवान लगते थे,
अब तो छप्पन भोग में भी वो स्वाद कहाँ,
बाज़ारों में भीड़ कहाँ,
रौनक और उत्साह कहाँ,
घर के बाहर तोरण कहाँ,
आपस में वो प्यार कहाँ,
मिठाइयों की शुद्धता कहाँ,
रिश्तों की पवित्रता कहाँ,
अपनों से मिलने का इंतज़ार कहाँ,
रिश्ते निभाने का शौक कहाँ,
आजकल त्योंहारों में वो बात कहाँ..
सुरभि गुप्ता.
हँसी- खुशी, उल्लास कहाँ,
पहले तो शक्कर बताशे भी पकवान लगते थे,
अब तो छप्पन भोग में भी वो स्वाद कहाँ,
बाज़ारों में भीड़ कहाँ,
रौनक और उत्साह कहाँ,
घर के बाहर तोरण कहाँ,
आपस में वो प्यार कहाँ,
मिठाइयों की शुद्धता कहाँ,
रिश्तों की पवित्रता कहाँ,
अपनों से मिलने का इंतज़ार कहाँ,
रिश्ते निभाने का शौक कहाँ,
आजकल त्योंहारों में वो बात कहाँ..
सुरभि गुप्ता.
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