...

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मुसाफिर हूं यारों....मुझे चलते जाना है बस चलते जाना...
चारों तरफ सन्नाटा है,
कानों से गुजरा सन्नाटा है।
भीड़ है मगर हर इंसान अकेला ,
है बचपन, है यौवन, है बुढ़ापा,
मगर जीवन पखा-पाखी का खेल है।
आया इंसान अकेला,
अकेला ही चला...