...

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इश्क़
बेपरवाह सा
जबरदस्त था
दिल मेरा हर हाल में
खुश था ,मस्त था ,
कौन सी घड़ी थी
जब डगर गलत चुनी थी
इश्क़ समंदर था
गहरा भवंडर था
डूबा दिल था
हुआ क्या हासिल था
सुन कर मेरा फसाना
क्या ही कर लेगा ज़माना
कोई न दिखती अपनी राह
उसके हैं गम , मेरी है आह
दिल की डोर जाने कब
हो गई हाथ से फुर्र
नाच रही ज़िन्दगी अब
किसी और की धुन पर
हो सके तो बात मानना
इश्क़ है मीठा ज़हर ,इसे मत चखना ....

© Geeta Dhulia