...

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आशियाना
तेरे इस आशियाने की खातिर,,,,
मैंने अपनी पहचान नश्वर करी है।
हर रिश्ते को रखा समेट कर,,,
ना शिकायत कभी कोई करी है।
कभी पसीना पोंछती आपका,,,,
कभी बच्चों का ख्याल रखती हूं।
सब काम निपटाकर घर के मैं,,,
सास ससुर की सेवा करती हूं।
फिर भी आप कहते हो,,,
के दिन भर ऐसा क्या करती हूं।
जो सुबह-शाम आपसे,,,
थके रहने की शिकायत करती हूं।
तो सूनों,,,,,,,,,,,,,
दिन भर मैं भागती हूं,,,
बस आप आराम से रह सको।
करने को तो इतना करती हूं,,,
के आप इस मकान को" आशियाना " कह सको।
चलो मानती हूं कि ईंट पत्थरों से,,,
यह मकान आपने बनाया है।
मगर आपने खून पसीने से सींचकर,,,,
इस को आशियाना तो मैंने बनाया है।

✍️✍️✍️ परमजीत कौर
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