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बन किसी की छांव तू...
#छायाओंकीकथाएँ
छांया मां-बाप की हो या
वृक्ष की दोनों ही सुखदायीं हैं,
वृक्ष चाहे फल वाला हो या बिना
फल वाला छायां तो सबको जेता है,
मां बाप चाहे अमीर हों या गरीब,
पालन पोषण तो सभी करते हैं,
इतना आसान नही ये दायित्व निभाना,
ये एक सम्पूर्ण आदर्शता का प्रतीक है,
किसी की छायां बनना इतना आसान नही,
इसके लिए खुद को जलाना पडता है,
स्वयं को तपाना पडता है,
झुलसती इस गर्मी में स्वयं को
झोंकना पडता है,
आसान नही किसी की छाया बन दाना,
इसके लिए स्वयं का बलिदान करना पडता है।
© राज
छांया मां-बाप की हो या
वृक्ष की दोनों ही सुखदायीं हैं,
वृक्ष चाहे फल वाला हो या बिना
फल वाला छायां तो सबको जेता है,
मां बाप चाहे अमीर हों या गरीब,
पालन पोषण तो सभी करते हैं,
इतना आसान नही ये दायित्व निभाना,
ये एक सम्पूर्ण आदर्शता का प्रतीक है,
किसी की छायां बनना इतना आसान नही,
इसके लिए खुद को जलाना पडता है,
स्वयं को तपाना पडता है,
झुलसती इस गर्मी में स्वयं को
झोंकना पडता है,
आसान नही किसी की छाया बन दाना,
इसके लिए स्वयं का बलिदान करना पडता है।
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