...

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झपकी
मैं रोज़ाना किसी रात के साये में,
थका मांदा सा नींद की राह ताकता हु,
खयालो, तसव्वुरातो, यादो की,
बड़ी तेज हवाएं चलती है रातभर,
की ज़हन औ दिल ठिठुर के रह जाते है,
पलके किसी चिराग़ के लौ के मानिंद,
बुझते बुझते जलती रहती है,
एक अजीब गहरा सन्नाटा गूंजता है,
जैसे मेरे भीतर की खामोशी चिल्ला उठी हो,
कई बार आहट सी होती है,
नींद आ रही हो आहिस्ता आहिस्ता,
पर वो गुज़र जाती की झपकी की तरह यकायक,
फिर वही आंधी खयालो तसव्वुरातो की,
थपेड़ो से झंझोड़ देती है ज़हन औ दिल को,
मैं फिर राह देखता हु रात के साये में नींद की,
फिर एक आहट होती है,
और एक झपकी आकर गुज़र जाती है।
© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚

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