...

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मोहब्बत ना होना अच्छा था।
कोई दवा भी तो नहीं रोते को चुप करने की,
हिम्मत भी नहीं रही किसी को सच बताने की,
पता मुझे भी है निकलना कुछ नहीं रोने से।
• ना होना अच्छा था हो के बेवफा होने से।।
इम्तिहान की घड़ी है अल्लाह खैर करे,
वो मुझे कर गया, उसे भी कोई गैर करें,
नींद आती ही नहीं, सुकून मिले कैसे सोने से।
• ना होना अच्छा था हो के बेवफा होने से।।
समझदार थे वो, ना-समझ मैं बंदा था,
कहते थे वो, नासमझ है तू, मैं ही अंधा था,
तुमें नहीं पता दर्द कैसा होता है किसी को खोने से।
• ना होना अच्छा था हो के बेवफा होने से।।
© Dharminder Dhiman