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ख्वाब मेरे बड़े अनोखे हैं
ख्वाब मेरे बड़े अनोखे हैं
अक्सर आ मुझसे मिलते हैं
उन्ही ख्वाबों से बातें करती हूँ
इन्ही ख्वाबों को जी खुश हो लेती हूँ
परिंदे के समान ऊँचे आसमाँ पे उड़ती हूँ
बादलों में जा ओझल हो जाती हूँ
ढूँढना चाहे कोई अगर
तो भी ढूँढ़ न पाता है
आसमाँ से चन्द बातें कर
आसमाँ का उजला पर्दा हटवा देती हूँ
परियों से कहानी सुन
परियों के साक्षात दर्शन कर लेती हूँ
अपनी सखी उन्हें बना
मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कह
ईश्वर से मिल लेती हूँ
ये सखियाँ ही ईश्वर से मुझे मिलवाती हैं
ईश्वर को समक्ष देख
मैं तो उनसे ही उनके अवतारों के बारे में
बातें कर लेती हूँ
उनकी चर्चा गीता, रामायण, महाभारत
में लिखी सन्दर्भ में बातें कर
उन्ही से चन्द प्रश्न पूछ लेती हूँ
पूछती हूँ कान्हा से
पूछती हूँ श्रीराम से
आपने जब लिया धरा पे अवतार था
तब भी तो आपमें ईश्वर विद्धमान थे
फिर नारी पे हो रहे क्यों अत्याचारों थे
क्यों नहीं तुम रोक पाए थे
तुम में तो ईश्वर विद्धमान थे
क्यों कहते लोग
हर विपदा की जड़ नारी
नारियों के कारण ही
महाभारत
रामायण ग्रन्थों की थी रचना हुई
क्यों ये तुम अत्याचार होने से
पहले ही तुम रोक न पाए
तुम ने किसी बुनी कहानी थी
तुम तो अंतर्यामी हो इस
सम्पूर्ण जगत के स्वामी हो
फिर तुम समय रहते क्यों
समय में बदलाव न कर पाए
निर्णय न ले पाए क्यों हर युग में
श्रीराम को लोग
कहने पे मजबूर हुए
तुमने था माँ सीता को था त्याग दिया
क्यों तुम्हारा उदाहरण दे
इस धरा पे इंसाँ अपने गुनाहों पे
आपके नाम का पर्दा लगा जाते हैं
क्यों अपने कुकर्मों को खुद को वे
जिम्मेदार ठहराते हैं
कान्हा का जब तुमने रूप धरा
क्यों नहीं द्रोपदी का अपमान होने से
पहले ही अपमान होने से रोक लिया
पति कर्तव्यों का पालन
चारों महारथियों को
क्यों नहीं था याद करवाया
माना हमने ये सब समय का चक्कर है
समय के विपरीत होते ही
बुद्धि भृष्ट होने का संकेत है
लेकिन समय को सही दिशा
प्रदान करना भी तो तुम्हारा ही काम है
हे श्रीराम तुम्हें हमारा प्रणाम है
चौदह वर्ष तक तुमने माँ सीता के
कारण ही राक्षसों का सँहार किया
फिर लोगों के कहने पे
माँसीता को था त्याग दिया
माँ सीता किस हाल में होंगी
तब ये सोच सोच कर चौदह वर्ष तक
जब आपने रुदन किया
फिर क्यों तुमने जब माँ सीता मिली
तब अग्नि परीक्षा का प्रवधान रचा
माँ का ह्रदय कितना रोया होगा
ये क्यों तुमने क्यों नहीं
उस क्षण तनिक भी विचार किया
महासभा में धोबी द्वारा लांछन लगाने पर
क्यों नहीं जिव्हा काटने का दंड दिया
अंत में हारकर
माँ सीताजी ने खुद ही निर्णय था लिया
राज महल त्याग वनदेवी बन
जीवन निर्वाह था किया
आपने भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी का परिचय दिया
अपना दूजा विवाह न होने दिया
आजीवन अकेले जीवन यापन किया
माँ सीता के रहते क्यों आपने
अश्वमेघ यज्ञ में मूर्ति का सहारा लिया
क्यों नहीं माँ सीता को आपने
उस पद का आसीन किया
हे ईश्वर माफ़ी चाहती हूँ
अपने मन में उठे प्रश्नों को
मैं न रोक पाती हूँ
क्योंकि खुद से अधिक
आप पे भरोसा मैं भरोसा करती हूँ
जब जब इस युग में नारी पे हो रहे
अत्याचारों को देखती हूँ सुनती हूँ
अपने मन में उठ रहे
इन सवालों को रोक मैं न पाती हूँ
एक पाती तुम्हारे नाम की भी
लिख जाती हूँ
हे विधाता इस कलयुग में जो
आपने किस रूप में अवतार लिया
उस अवतार के
बारे में भी हमें बताओ न
क्या आज भी नारी के कारण ही
कोई बड़ा महाकाव्य लिखा जाएगा
या फिर कलयुग के इन दानवों का सर्वनाश
स्वयं ही हो जाएगा
उफ्फ मैं भी किन सवालों को ले बैठ गई
धरा में बिछाए आपके मायाजाल में
मैं भी फँस गई
मुझे मेरे प्रश्नों के भँवर में फँसा देख
ईश्वर बोले बेटी तेरे सभी प्रश्न उत्तम हैं
इंसाँ का रूप मैंने भी था धरा
मैंने भी इंसाँ का रूप धर
बहुत कुछ था सहा
फिर भी मर्यादा का था पालन किया
अच्छे बुरे में क्या फर्क है
था समझाया
गीता के उपदेशों द्वारा
अन्याय कभी न सहना
चाहे अपनों के ख़िलाफ़ पड़े तुम्हे लड़ना
आज की नारी देखो कितनी ससक्त है
माँ सरस्वती का ज्ञान है उसमें
एक पीढ़ी नहीं
दो दो पीढ़ियों को पढ़ा बनी महान है
ये भी तो ईश्वर से मिला उसे वरदान है
कलयुग में हर नारी
माँ काली दुर्गा का अवतार है
इनमें ही सभी माँ काली माँ दुर्गा की
सारी शक्तियाँ विद्धमान है
तभी तो नारी पूज्ययन्ति
सृस्टि में बना मूल आधार है
बिन नारी के मानव की
अपनी न कोई पहचान है
सतयुग कलयुग में
जमीं आसमाँ का अब अंतर है आया
अब नारी नहीं बेचारी है
मैनें भी मानव का रूप धर
हर युग में लिया अवतार है
मानव जीवन इतना आसाँ नहीं
ये भी मानव बन मैंने जाना है
फिर भी हर समस्याओं का निवारण
समस्याओं से ही सबक ले अपने ग्रन्थों के
माध्यम से समझाया है
चल उठ देख चहुँ दिशा
फैला उजियारा है
मैंने भी ईश्वर को धन्यवाद किया
अपनी उसी धरा पे
एक बार फिर प्रस्थान किया
मुझे भी कैसी निद्रा ने आ घेरा था
ख्वाबों का सुन्दर लगा जहाँ मेला था
निद्रा जब टूटी तो अपने आपको
पाया अकेला था
फिर भी ख्वाबों में आए
ईश्वर के साथ को मन न भूला था
मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद किया
हर कार्य में हमारे ईश्वर ही तो सलंग्न
रहते हैं मन कर्म वाणी में
जब हम उन्हें धारण रखते हैं
बस इतनी सी प्रभु आपसे मेरी विनती है
कहीं गलत दिशा में
जिन्दगी की गाड़ी न भटके
गाड़ीवान बन तुम
मेरी गाड़ी चला
सही मार्ग पे जाना
मन कर्म तुम्हे नित ध्यावे
ऐसे कर्म हमसे करवा देना
जीवन नईया पार लगा देना
जीवन नईया पार लगा देना
बस इतना उपकार
हम नादाँ प्राणियों पे तुम कर देना
बस इतना उपकार
हम नादाँ प्राणियों पे तुम कर देना
© Manju Pandey Choubey