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स्त्री
बोलते हैं बहुत कुछ बिखरे बाल एक स्त्री के
पसीने से तर बतर बदन,मस्तक पे आती लकीरें
ललाट से हटी बिंदिया,वीरान पड़े नाखून
फिर भी होठ से आह तक नहीं निकलती क्यूंकि
जिसे मिटा हुआ स्त्री का अस्तित्व नहीं दिखता
घर रूपी कैद में बनवास काट रही नारी नहीं दिखती
वो भला क्या समझेगा तुम्हारे दुख दर्द और मनोभावना को
तुम्हारे हृदय में छुपी भावना को
© Poetry Girl
पसीने से तर बतर बदन,मस्तक पे आती लकीरें
ललाट से हटी बिंदिया,वीरान पड़े नाखून
फिर भी होठ से आह तक नहीं निकलती क्यूंकि
जिसे मिटा हुआ स्त्री का अस्तित्व नहीं दिखता
घर रूपी कैद में बनवास काट रही नारी नहीं दिखती
वो भला क्या समझेगा तुम्हारे दुख दर्द और मनोभावना को
तुम्हारे हृदय में छुपी भावना को
© Poetry Girl
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