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मन का अपराध
#मन का अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता का प्रहार करता है
गहरी से गहरी बात का आवाहन करता है।।

मन मौन व्रत कर अपराध करता है
कभी गुस्से को शांत करता है
तो कभी गुस्से को विकराल रूप प्रदान करता है
मन मैं भरे गुस्से से खुद के व्यक्तिव का नाश करता है।।

मन मौन व्रत कर अपराध करता है
अपनी इच्छा, आकांशाओ को मौन करता है
अनछुए भावनाओं को मन में बसा कर
विचारों के समुद्र में डूबा करता है।।

मन मौन व्रत कर अपराध करता है
अवगुणों की छाया में लिपटा हुआ
मन अपनी चालबाजी का सिर उच्चा करता है
शब्दों के आंधार में, सुनने की भूखा
सतत विचारों का समर्थन करता है।।

मौन रह कर भी बहुत कुछ कहता है
क्या मन सच में मौन व्रत कर अपराध करता है?




© &wati&harma