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में नही
वो कहते हैं की घुल मिल जाओ,
मगर में कैसे निकल जाऊँ,
मुझे बताओ,
उसके दिल को कैसे अकेला छोड़ आऊँ,
उसे घबराहट होती है,
और मुझसे कुछ खाया नही जाता,
कैसा है उसका दुर होना,
जुबान से बताया नही जाता,
कोई दर्द उठता है सीने मे छुप के,
बस दर्द ही उठता है फिर में नही,
में होता हूँ तो ईश्क़ नही,
फिर ईश्क़, फिर में नही|
vlyricist.
© All Rights Reserved
मगर में कैसे निकल जाऊँ,
मुझे बताओ,
उसके दिल को कैसे अकेला छोड़ आऊँ,
उसे घबराहट होती है,
और मुझसे कुछ खाया नही जाता,
कैसा है उसका दुर होना,
जुबान से बताया नही जाता,
कोई दर्द उठता है सीने मे छुप के,
बस दर्द ही उठता है फिर में नही,
में होता हूँ तो ईश्क़ नही,
फिर ईश्क़, फिर में नही|
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