...

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आंखें रस्ते में बिछा बैठे हैं
आंख रस्ते में बिछा बैठे हैं,
रख के दरवाजा खुला बैठे हैं,

किसी को इंतज़ार है उनका
आने वाले ये भुला बैठे हैं,

उसको परवाह ही नहीं इसकी,
हम ये दिल किस से लगा बैठे हैं,

हमसे आया नहीं दगा देना ,
इसलिए खाके दगा बैठे हैं,

नहीं जाता किसी दवा से वो,
दर्द सीने में जगा बैठे हैं,

वो बैठे हैं मेरा बुरा करके,
जिनका हम करके भला बैठे हैं,

इसी उम्मीद पे कि कोई तो,
कभी तो देगा सदा बैठे हैं,

लिए कश्कोल अपने हाथों में
उसके दर बन के गदा बैठे हैं,

अब तो बरसा दे अपनी रहमत को,
कब से तेरे दर पे खुदा बैठे हैं,

© राम अवतार "राम"