...

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ये दूरियाँ...
ना हम तुम्हारे हुए
और ना ही तुम हमारे हुए
अब ये दूरियाँ ही हम दोनों को
गँवारे हुए,
इश्क़ के इस डगर में
चाहतों के मोड़ ही सहारे हुए
कभी जुदा तुम हुए
तो कभी हम ही खुद किनारे हुए,
थी मंजिल भी वहीं पर
की हम थे जिस रास्ते पर
लेकिन जब तुम बने अंजान तो हम भी बेखबर हुए,
जो लगाई थी आग हमने
दिलों में अपने निरा अभिमान की
जो जली तु उसमे तो हम भी उसी अना मे राख हुए,
है ये खेल ही कुदरत का कि
ना हम तुम्हारे हुए
और ना ही तुम हमारे हुए
अब ये दूरियाँ ही हम दोनों को
गँवारे हुए_!!
© दीपक