...

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शब्द लौट आते हैं...
शब्द लौट आते हैं तो फिर वापस लौटते नहीं
दिल हल्का और कागज़ भारी ना हो जाए
तब तक किसी हाल में लौटते नहीं
वक़्त कि बंदिश को बेझिझक नकारते हैं
आँख दिखाएं तो बेखौफ़ रूह को पुकारते हैं
और फिर कोई कैसे ही खुदको रोक पाए
नींद भी उड़ जाती हैं मुसलसल ख्वाबों में
कुछ नये सवाल मिलते हैं पुराने जवाबों में
और जीना फिर से शुरू होता हैं
दुनियाँ भर के सारे कामकाज
फिर कहाँ जहन में रहते हैं
शब्द बरसते रहते हैं
और हम तरसते रहते हैं
एक एक कर हर मुराद लिखने के लिए
एक लेखक बन के जीने के लिए


© Shravani Sul