...

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ये रात
वो ख़ाली कमरा आज भी
वैसा दिखता है जैसा उस रात तक दिखा

आज वो ख़ालीपन वो तन्हाई
पसरी है हर कोने में हर लम्हे में

जाने कितने ही पल महसूस कर गया
जैसे ही देखा उस ख़ाली कमरे को

वो आख़िरी साँस वो आख़िरी आवाज़
वो आख़िरी नज़र वो आख़िरी हाथों की तपिश

जाने कितनी ही गहराई से मुझे फिर छू गई
लगता है कही से किसी भी पल आहट सुनाई देगी

पर ख़ामोश शाम ख़ामोश रात उफ़ ये बरसाती
बेक़रार सी रात जाने कैसे कटेगी ये रात
© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚