12 views
पिता
अपने क्रोध के वशीभूत हो
इच्छा तो बहुत है
खरी खोटी ख़ूब सुनाऊं
उसको उसकी औकाद बताऊं।
पर जब वो सामने होता
आंखे नम पड़ जाती
क्रोध काफूर हो जाता
जज़्बात हिचकियां लेते
आंखे बंद करते ही
मानस पटल पर एक चलचित्र
उसके सारे सुनहरे यादों को बिखेर देता।
फिर सोचता हूं मेरी परवरिश में
कहां चूक हो गई
इतना बदलाव आखिर क्यों
क्या जिंदगी में किसी के जुड़ने से
पुराने सारे रिश्ते विलीन हो जाते।
अंततः बस यही सोच कर
मुश्कुरा देता
की मैं एक पिता हूं
बच्चों को सही रास्ता दिखाना
और माफ करना ही मेरा धर्म है।।।।
23rd Jun 2018, 11pm
© Rohini Sharma
इच्छा तो बहुत है
खरी खोटी ख़ूब सुनाऊं
उसको उसकी औकाद बताऊं।
पर जब वो सामने होता
आंखे नम पड़ जाती
क्रोध काफूर हो जाता
जज़्बात हिचकियां लेते
आंखे बंद करते ही
मानस पटल पर एक चलचित्र
उसके सारे सुनहरे यादों को बिखेर देता।
फिर सोचता हूं मेरी परवरिश में
कहां चूक हो गई
इतना बदलाव आखिर क्यों
क्या जिंदगी में किसी के जुड़ने से
पुराने सारे रिश्ते विलीन हो जाते।
अंततः बस यही सोच कर
मुश्कुरा देता
की मैं एक पिता हूं
बच्चों को सही रास्ता दिखाना
और माफ करना ही मेरा धर्म है।।।।
23rd Jun 2018, 11pm
© Rohini Sharma
Related Stories
23 Likes
4
Comments
23 Likes
4
Comments