...

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तुम सिर्फ तुम
तुम सिर्फ तुम
और है भी कौन
मेरे भीतर
कहीं गहराई में
तुम ही तो शब्द
और तुम मेरा मौन
सोच विचार
आखिर एक हद है
तुम सिर्फ तुम
मुझमें कहीं बेहद हो
एक कलरव सरीखी
अनुगुंज मन के भीतर
रजनीगंधा सी खिली
कस्तूरी को जैसे समेटे
हां कुछ पागल हूं मैं
तुम सिर्फ तुम
ढूंढता कहीं खुद मैं
© "the dust"