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"परदेसी चाँद"

ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
§§

"परदेसी चाँद"
(30 जून 2024)

"चला आया परदेस में, छोड़ सनम की गलियां,
जो चाँद कल था अपना, आज परदेसी हो गया,

भूल ही तो गया था, चाँदनी अपने चाँद की,
दूर आकर ख़ुद में कितना, मसरूफ़ हो गया,

लम्हे फ़ुरसत के जो मिले, इक ज़माने के बाद,
पाया ख़ुद से ही मैं तो, कितना दूर हो गया,

फिर वही पूनम की रात, फिर वही चाँदनी,
आज फिर वो इश्क़ पुराना, *नसरीन हो गया,

आवाज़ें फिर आने लगी, खनकते कंगनों की,
शायद अफ़साना अपना, रूमानी हो गया!"
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*नसरीन = खिलता सफ़ेद फूल
(Picture taken from Internet)
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#treasure_of_literature