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मां, मैं लाडली तेरी प्रदेश जा रही हूं
मां, मैं लाडली तेरी प्रदेश जा रही हूं
वहां मेरी रक्षा करने आगे आएगा कौन
तुम सब यही रह जाओगी
मेरी राह में वहां फुल खिलाएगा कौन

मुझे क्या करना चाहिए नहीं करना चाहिए
वहां मिठी शब्दों में समझाएगा कौन
पापा भाई कोई नहीं है वहां
किसी जरूरत पर दौड़ कर आगे आएगा कौन

मैं एक स्त्री हूं
मुझे बुरी नजरों से बचाएगा कौन
भुखे पेट सो गया अगर तो
दो रोटी का टुकड़ा जगा कर खिलाएगा कौन

दिन भर थक हार जब रूम जाऊंगी
तो वहां सर पर हाथ सहलाएगा कौन
दादा दादी नाना नानी के चरण चुंबन का
मिठी एहसास व मिठी नींद सुलाएगा कौन

झुम कर आज नाच रही हूं
नौकरी में आ रहे दुविधा से लड़ने को पग बढ़ाएगा कौन
देख मां दुर भले ही जा रही हूं तेरी पास रहूंगी
क्योंकि तेरी याद को मसरूफ कर पाएगा कौन

भीगे पलक पर दो धारी तलवार बन कर
वहां साथ मेरा खड़ा हो पाएगा कौन
आ जिंदगी अब दो- दो हाथ हो जाएं
नारी शक्ति हूं इसे जग में झुकाएगा कौन

अगर रूक गए हम तो फिर कल्पना चावला,,,,, बन कर
भारत का नाम नारी शक्ति के लिस्ट में बरकरार रखेगा कौन
मां दो विदाई अब चलती हूं
कर्म धरा पर कर्म करने का अवसर फिर देगा कौन

मां मेरी नसीब में जो होगा वही करूंगी
इस धरा इस मिट्टी की कर्ज चुकाएगा कौन
जन्म लिए मर गए कुछ कर नहीं पाए तो
चमचमाते तारे की तरह दुनिया को मुंह दिखाएगा कौन

मां, मैं लाडली तेरी,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar